* CHRONICLE - PENSIONERS CONVERGE HERE, DISCUSS ISSUES OF THEIR CHOICE * CHRONICLE - WHERE EVEN THE CHAT COLUMN PRODUCES GREAT DISCUSSIONS * CHRONICLE - WHERE THE MUSIC IS RISING IN CRESCENDO !

               
                                   

Friday, October 03, 2014

एक आदमी कभी भी तनावग्रस्त नहीं रहेता था‏

एक आदमी कभी भी तनावग्रस्त नहीं रहेता था, और उसके सभी पड़ोसी इस बात से चकित थे। और जानने के लिए यह वार्ता पढ़े।

हमारी दुनिया कभी कभी एक तनावपूर्ण जगह हो सकती है। हमने इसे कुछ अधिक जटिल एवं द्रुत बना दिया है। लोगों की अपेक्षा यह है कि सब कुछ तुरंत हो जाना चाहिए। मानव दक्षता को अब दिन, सप्ताह और महीनों के स्थान पर घंटे, मिनट तथा क्षणों में जांचना शुरू कर दिया गया है। क्या ऐसा करना आवश्यक है? यह हमारे शारीरिक एवं भावनात्मक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है और इसने हमारे जीवन में तनाव को और बढ़ा दिया है। आप एक झटके में अचानक पूरी दुनिया को तो नहीं बदल सकते। वास्तव में, आप स्वयं में भी एक झटके में परिवर्तन नहीं ला सकते। परंतु आप अपने जीवन, अपनी यात्रा तथा अपनी प्राथमिकताओं पर चिंतन अवश्य कर सकते हैं और अपने जीवन की गति निर्धारित कर सकते हैं। एक ऐसी गति जिस से आप को सुख एवं आंतरिक शांति प्राप्त हो। कहा जाता है कि पॉर्श ऑटोमोबाइल का मुख्य इंजीनियर एक बार उत्साहपूर्वक डॉ. फेरी पॉर्श (कंपनी के मुख्याधिकारी) के पास पहुँचा और उनसे कहा कि उसने दुनिया के सर्वश्रेष्ठ वाहन की रचना की है।

“वह कैसे?” डॉ. पॉर्श ने पूछा।
“क्योंकि, इस का त्वरण दुनिया के अन्य सभी वाहनों से अधिक है।”
“उस से यह दुनिया का सर्वश्रेष्ठ वाहन नहीं बन जाता। जिस दिन तुम्हारा वाहन उसी गति से रुक पाता है जिस तीव्रता और त्वरण से वह आगे बढ़ता है, तब मेरे पास लौट कर आना। तीव्रता से आगे बढ़ना उत्तम है परंतु तीव्रता से गति को रोकना उस से भी बेहतर होता है।”

वास्तव में यह एक मार्गदर्शक सिद्धांत हो सकता है - क्या आप सही गति से जा रहे हैं? जब आप को रुकने की आवश्यकता हो तब क्या आप स्वयं को रोक सकते हैं? आप संभवत: और तीव्र गति से जा सकते हैं, परंतु क्या आप को उस की आवश्यकता है? यदि आप अपनी गति के साथ संतुष्ट हैं, तो दुनिया की गति की आप को चिंता नहीं होनी चाहिए। जब आप दूसरों के अनुसार अपनी गति को बदलने का प्रयास करते हैं तब ही आप अपना संतुलन खो देते हैं। परंतु समाज में जीने के लिए क्या अन्य व्यक्तियों के अनुसार जीवन की गति बदलना आवश्यक नहीं है? कदापि नहीं क्योंकि वे स्वयं भी आप को देखकर अपनी गति को बदलने का प्रयास कर रहे हैं। गति को धीमी करने का यह अर्थ नहीं कि आप अपने अनुशासन या आकांक्षा को त्याग दें अथवा आप नौकरी से लम्बा अवकाश ले कर दुनिया के एक दौरे पर निकल पड़ें (हाँ यदि आप की ऐसी इच्छा हो तो आप अवश्य कर सकते हैं)। गति धीमी करने का अर्थ है वर्तमान क्षण में रहना, उस पर ध्यान देना। मानसिक तनाव को दूर करने का यही सबसे निपुण प्रतिविष है। सही निर्णय करने हेतु आप का यह जानना आवश्यक है कि आप का उद्देश्य क्या है और क्यों आप उस लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं। 

जब आप हर क्षण पर ध्यान देने लगते हैं तब आप स्वाभाविक रूप से वर्तमान क्षण में जीने लगते हैं। और वर्तमान में जीना ही आंतरिक शांति का आधार है। यही सत्य है। मुझे एक कहानी याद आती है -

एक छोटे से गांव में एक सुखी परिवार रहा करता था। वह परिवार एक ऐसे पुरुष का था जो ना कोई धनी व्यापारी था ना ज़मीनदार, केवल एक साधारण लोहार जो अन्य गृहस्थियों के समान कईं चुनौतियों का सामना करता था। उसके पड़ोसी इस बात से चकित थे कि उस घर में कभी कोई लड़ता नहीं था अथवा बहस नहीं करता था। जब लोहार घर पहुँचता था तो सबसे पहले घर के आँगन में एक वृक्ष की एक शाखा को पकड़ कर उस की पूजा करता था फिर घर में प्रवेश कर के अपने बच्चों के साथ प्रसन्नता से खेलता था। चाहे वह जितना भी तनावग्रस्त घर आता शाखाओं को छूते ही ऐसा खिल उठता मानो उसने कोई दूसरा रूप धारण कर लिया हो। कईं पड़ोसियों ने अपने घरों के बाहर भी वैसा ही एक वृक्ष लगाया तथा उस लोहार की शैली को भी अपनाया परंतु उनके हालात ना बदले। एक दिन, उनसे और रहा ना गया और उन्होंने उस से पूछा -
“आप किस प्रकार सदैव घर के अंदर प्रसन्न रहते हैं? आप तो पर्याप्त धन भी नहीं कमाते हैं फिर भी आप घर में बहस भी नहीं करते। उस वृक्ष को छूते ही आप अति प्रसन्न एवं उज्ज्वल हो जाते हैं। कृपया हमें वृक्ष का रहस्य बताएं।”
लोहार हँसने लगा। “वृक्ष का कोई रहस्य नहीं है,” उसने कहा। “घर में प्रवेश करने से पहले, मैं वृक्ष की एक शाखा को पकड़ कर अपने सभी दैनिक समस्याओं का एक काल्पनिक थैला उस शाखे पर लटका देता हूँ। मैं यह कभी नहीं भूलता कि मैं पूरे दिन बाहर था ताकि मैं अपने घर के अंदर प्रसन्न रह सकूँ। मैं कभी अपनी बाहरी समस्याओं को घर के अंदर नहीं ले जाता हूँ। इसलिए प्रतिदिन मैं थैले को बाहर लटका कर ही घर में प्रवेश करता हूँ। इतना ही नहीं हर दिन सुबह मैं उस थैले को अपने साथ काम पर लेकर जाता हूँ।”
“आप ऐसा क्यों करते हैं?”
“क्योंकि बाहरी दुनिया में मुझे अब भी उन समस्याओं का सामना तो करना ही होगा। परंतु दिलचस्प बात यह है कि सुबह सदैव मेरा थैला स्वयं ही और हलका लगता है। अधिकतर समस्याएं रात के अंधेरे में खो जाती हैं।”

आप बाहर जाकर नौकरी क्यों करते हैं? ताकि आप घर में एक आरामदायक एवं शांतिपूर्ण जीवन जी सकें, है ना? माना कि कभी कभी घर में भी जीवन जटिल हो सकता है परंतु फिर भी आप बाहर की समस्याएं बाहर ही छोड़ सकते हैं। यह है वर्तमान में जीना। क्या अधिकतर ऐसा नहीं होता कि मनुष्य की अधिक पाने की तथा अधिक सम्पत्ती प्राप्त करने की इच्छा बाहरी वस्तुओं को देखने से प्रभावित होती है? और तो और इन महत्वाकांक्षाओं एवं इच्छाओं के कारण आप ना तो अपने भोजन का आनंद ले पाते हैं ना अपने प्रियजनों के साथ चैन से समय बिता पाते हैं। जब आप अपने साथी के साथ समय बिताने का प्रयास करते हैं, तब आप या तो नौकरी के विषय में सोचने लगते हैं अथवा यह सोचने लगते हैं कि आप के पास क्या वस्तु एवं सम्पत्ति होनी चाहिए। नौकरी पर आप उत्तम रूप से काम करना चाहते हैं ताकि आप और धन अर्जित कर सकें तथा आप अपने और अपने परिवार के साथ और अधिक आनंदमय समय बिता सकें। परंतु जब परिवार के साथ आनंदमय समय बिताने का समय आता है तब नौकरी के विषय में विचार उन क्षणों को नष्ट कर देते हैं।

परंतु क्या आप इस से बच सकते हैं? अवश्य। अपनी प्राथमिकताओं को लिख लें और उन की नियमित रूप से समीक्षा करें। हो सकता है कि आप की बाहरी दुनिया ना बदले। लोग आप को भावनात्मक रूप से थकाते रहेंगे, नौकरी पर तनाव अत्याधिक रहेगा, टीवी पर बुरी खबरें आती रहेंगी, दुनिया के पतन का कोई अंत नहीं दिखाई देगा, महँगाई कभी कम नहीं होगी - परंतु यदि ऐसे में आप शांति का अनुभव करना चाहते हैं तो आप को अपनी सोच तथा अपने विचारों पर ध्यान देना होगा। आप के जीवन में, आप के मन में, आप को एक ऐसा स्थान बनाना होगा जिस में केवल आप निश्चित करते हैं कि क्या और कौन उस में प्रवेश करता है। इस प्रकार अपने आप को बुरे विचारों से सुरक्षित रखें। यह एक कला है। तनाव एक प्रतिक्रिया है एक भावना नहीं। किसी समस्या का सामना करने के लिए आप स्वयं इस प्रतिक्रिया को चुनते हैं।

यदि आप के पास कोई बोझ है, इस का यह अर्थ नहीं कि उसे सर पर उठाए चारों ओर ले कर चलना आवश्यक है। बोझ को नीचे उतार कर भी रखा जा सकता है। जीवन में आप को जो बोझ दुख पहुँचा रहा है उस को उतार कर नीचे रख दें। वास्तव में मनुष्य स्वत: तनाव का शिकार नहीं बन जाता, वह स्वयं ही तनाव का चयन करता है।

शांति।
(Recd thru SC Kapoor)