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Wednesday, July 09, 2014

SUDERSHAN JATANA


 
तुम तो निजात पा गये आलम को छोड़ कर
पर हम तो पा सकेंगे नहीं गम से ही निजात I
ताज़ा है अब तक ज़हन में वो तीन जनुअरी 
इस साल जब मैं आ के तुम्हें घर पे मिला था ! 
जाने को हम तय्यार थे एक लम्बे सफर को 
था वक्त का तकाज़ा व मजबूरी-ए-हालात। 
जी भर के भी न मिल सके, था वक्त मुख्तसिर 
हसरत भरी निगाहों से बस अलविदा कहा।

शफ़कत से नवाज़ा हमें बरसाईं दुआएं 
लेकर इन्हें रुखसत हुए थे अपने सफ़र को।
हसरत थी तमन्ना थी बार बार मिल तो लें 
फ़ानी जहां से कूच कर जाने से पेश्तर I
कामिल यकीं था आस भी फिर आ के मिलें गे 

इस आस से तस्कीन मिली, कुछ चैन भी दिल को ! 

फुर्क़त्त के तस्सुवर ने किया था इस क़दर निढाल
मुश्किल से ही थे कर सके आग़ाज़ सफ़र का !

मजबूरी ए हालात ने गुल ऐसा खिलाया 
कर खून हसरतों का दिया दर्द भी ऐसा !

बिगड़ी तेरी सेहत का ही हर रोज़ का ख़य्याल 
हर पल मुझे मायूसीओ के दर पे ले जाता !

मैं बारहा हज़ारहा परवर्द्गार को
करता था वक़्फ़ सारी दुआएं तेरे लिए !

खदशा था या तश्वीश थी जिस बात की मुझको
वो नामुराद ख़याल ही बस बन गया दुश्मन !

तुम से ही थी वाबस्ता खानदान की ही राह, 
जिस राह पे ही पैवंद हैं तुम्हारे नक्श-पा !

क़िस्मत से ही मिले थे तुम मखलूस इक राजा, 
सब के दिलों पे राज करते थे हमेशा तुम !

हर दिन की सुबह लाती है सूरज की किरण इस धरती पर 
पर हुनर ए सुखन से तुम तो सदा हर दिल को चराग़ाँ करते थे !

उस पर तेरी मुस्कान तोह्बा क्या ग़ज़ब ढाती 
खिचे चले आते थे कचे धागे की मानंद !

हटता नहीं इक पल भी तेरा माहजबीं चेहरा, 
नज़रों में ही पैवंद है तस्वीर आप की!

आने से तेरे किबल ही झोंका हवाओं का, 
देता था मरे दर पे ही वो दस्तक-ए-आमद !

बेताबी-ए-दिल से तेरा करते थे इंतज़ार, 
जब सामने पाते ख़ुशी थी चूमती क़दम !

तुम खिदमत ए मख्लूक़ में जुटे थे इस क़दर
उस को ही था बना लिया दीन ओ ईमा तेरा !

आसाइशों आराम को कर तुम ने दर गुज़र
बाम ए अरूज़ लाये तुम " सूद भवन " को !

समाज सेवा में थे कोशा दिल ओ जान से
पर घर की मसलेहत का था जनूँ बाला तर !

इस में ही तेरी वक़्फ़ थी हर सुबह शाम ओ शब
बहबूदी व मसलेहत ही में अहलो अय्याल की !

न दिन को तुम्हें चैन था न रातों को आराम
खिदमत ही बस खिदमत ही था दीन ओ ईमान तेरा !

अनथक व बे शिकन वो सेवा हर इंसान की
लासानी रहेगी हैं जब तक चाँद सितारे !

जद्दो जहद क़ुर्बानिओं की तुम हो इक मिसाल 
तेरा न कोई सानी होगा इस जहाँन में !

यकलख्त ही तुम मोड़ लोगे मूंह, न सोचा था
पल भर भी हम न कर सके थे, इसका तस्सव्वर !

बच्चे तेरे निढाल शरीक-ए-हय्यात भी,
पल भर भी तुम्हें भूल न पाएंगे वो कभी!

ला-इन्त्तेहा शफ़क़त से तुमने उनको नवाज़ा,
तुम से जुदा न कर सकेगा अजल-ए-मौत भी!

खुशिओं ने नाता तोड़ दिया जब से तुम बिछड़े,
कब तक भला जिएगा कोइ ग़म के सहारे!

तुम क्या गए बहारों ने भी फेर लिया मुँह
दे के दिलासा झूठा फिर से लौट आने का !

इन्सानिअत व प्यार की तुम दे गए दौलत,
ममनून व मशकूर रहेंगे तेरे ता-हय्यात!

यारब तुम्हारी रूह को ही जन्नत अत्ता करे, 
है बारहा हज़ारहा हम सब की यह दुआ!

अति शोक ग्रहस्त
मित्र


सुदर्शन कुमार जटाना " दर्द "
शोकग्रस्त: जटाना परिवार: अदिति-समीर , स्वर्ण-सुदर्शन, सना-सनत